आलेख//आचार्य आशीष मिश्रा
वर्तमान में रीवा से मिर्जापुर रेलवे ट्रेक बिछाने की चर्चा का बाजार जोरों से गर्म है,चारों ओर केवल एक ही आवाज सुनाई दे रही है, कि इससे रीवा का विकास असीमित ऊंचाइयों को छूने लगेगा जबकि सच्चाई कुछ और ही है, ऐसा करने के पीछे का असली रहस्य क्या है ? यह तो नेतानगरी ही जाने लेकिन इस प्रस्तावित रेलमार्ग से रीवा के लगभग दो तिहाई हिस्से के विकास का सदा-सदा के लिए पटाक्षेप हो जाएगा। हम आपको बता दें कि यह महत्वाकांक्षी परियोजना रीवा से मिर्जापुर को मिलाकर पूरी नहीं होती बल्कि यहां से इसकी शुरुआत भर है दरअसल यह परियोजना कोलकाता से मुंबई को जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी परियोजना है इसी तरह की एक अन्य 330 कि.मी लंबी रेलमार्ग परियोजना झारखंड के बरवाडीह से चिरमिरी तक लंबित है जिसके निर्माण से कोलकाता-मुंबई के बीच 400 किलोमीटर दूरी कम हो जाएगी इसके सर्वे का काम शुरू भी हो चुका है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुई यह परियोजना अभी तक लंबित है ।
रीवा से मिर्जापुर रेल्वे लाईन को हनुमना होते हुए मिर्जापुर तक ले जाने की योजना है। चुनाव के ठीक पहले मऊगंज को नया जिला बनाना चुनावी माहौल बनाने की रणनीति का एक हिस्सा है। यह रेल लाइन भले ही एक बड़ी परियोजना का हिस्सा है लेकिन इससे रीवा के विकास की अनदेखी नहीं की जा सकती वह भी जब यह जिला भयानक गरीबी और पिछड़ेपन की गिरफ्त में फंसा हुआ है । क्षेत्रीय दृष्टिकोण से उपयोगिता शून्य इस रूट से हजारों एकड़ भूमि का कृषिजन्य उत्पादन जो स्थानीय आजीविका का आधार है से भी वंचित हो जाएगा। हममे से वो लोग जिनके गांवों से होकर रेलवे अधिकारियों ने सर्वे कार्य किया था इस खबर को पढ़ते ही फट से समझ जाएंगे कि इस रूट का हमारे गांव के सर्वे से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है लेकिन वह यही सर्वे था जिसे रीवा से सिरमौर के आसपास से होते हुए रेलवे अधिकारियों द्वारा किया गया था।
फिर भी यह मान लिया जाए कि रीवा मिर्जापुर रेलवे रूट निर्माण के लिए किया गया सर्वेक्षण पूरी तरह से निष्पक्ष है और रेलवे द्वारा सभी पहलुओं पर विचार करके तैयार किया गया है, ऐसी स्थिति में रेलवे विभाग को अपने इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर यथार्थ रूपांतरण से पूर्व विचार करना चाहिए कि उसने किस प्रकार हजारों करोड़ रुपए और हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि को बर्बाद करने योजना को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है जो कि इस प्रकार है, कि यदि इस रेललाइन को रीवा तक मउगंज के हनुमना से होकर ही लाना था तो इसे रीवा सिंगरौली रेल रूट में पड़ने वाले सीधी रेलवे स्टेशन से ही कनेक्ट क्यों नहीं कर दिया गया? जिससे इसकी दूरी कम हो जाती और हनुमान जो कि नवगठित जिले मउगंज का अंग है एक सीध में सीधी, सिंगरौली और रीवा से जुड़ जाता।ऐसे में जबकि रीवा के एक हिस्से से रीवा सिंगरौली रेलमार्ग का निर्माण किया जा चुका है विकास की राह जोह रहे रीवा के सिरमौर, जवा, त्योथर का भाग जहां जिले की 80% आबादी निवासरत है । तथा इस रूट से रेलवे अधिकारियों द्वारा सर्वे भी किया जा चुका है फिर स्वीकृत रूट के लगभग समान दूरी वाले इस सर्वेक्षण पर विचार क्यों नहीं किया गया? अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेलवे लाइन विस्तार की इस महत्वपूर्ण परियोजना में महत्वपूर्ण विंदुओं की भारी उपेक्षा की गई है यह रेल विस्तार उसी क्षेत्र से होकर किया जा रहा जहां पहले से रीवा-सिंगरौली रेलमार्ग के रूप में क्षेत्र को लाभान्वित किया जा चुका है । लेकिन यह बात पूरी तरह से समझ से परे है कि आखिर क्यों इस परियोजना से रीवा जिले के उन हिस्सों को अलग थलग कर दिया गया जहां इस जिले की अधिकांश जनसंख्या निवास करती है और निम्न जीवन स्तर के उपरांत भी स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय विकास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है इसके उलट जगंली और अत्यंत कम घनी आबादी के वाले स्थान से होकर पुनः दूसरे रेल रूट का निर्माण क्यों किया जा रहा है।
रीवा से सिंगरौली के लिए तय किया गया रूट सरकारी धन और हजारों एकड़ कृषि भूमि की बर्बादी है अब इसके विरोध में आवाज उठने लगी है।
वर्तमान में तय किए रीवा मिर्जापुर रेल रूट के लगभग ठीक समान दूरी को तय करते हुए यदि इस रेलवे लाइन विस्तार को रीवा से सिरमौर टनल का निर्माण करते हुए अतरैला, त्योथर, कोंराव होते हुए मिर्जापुर में मिलाया जाता तो इसे सिरमौर, सेमरिया, जवा, त्योथर जैसे रीवा के घनी आबादी और तराई अंचल में रहने वाले करोड़ों लोगों के विकास के बहुमुखी अवसर उपलब्ध हो जाते।यही नहीं कोरांव से हनुमना की दूरी महज 30 किलोमीटर रह जाएगी। इस प्रकार हनुमना, कोरांव से 30 किलोमीटर और सीधी से 40 किलोमीटर की दूरी में स्थित हो जाएगा और एक छोटी परियोजना के माध्यम से रीवा, हनुमना, सीधी, सिंगरौली, मिर्जापुर और अतरैला से डभौरा तक मात्र 19 किलोमीटर की कनेक्टिविटी के साथ प्रयागराज, चित्रकूट, और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के समस्त स्थानीय जिले आपस में जुड़ जाएंगे और रीवा से अतरैला, त्योथर, कोंराव होते हुए मिर्जापुर को जोड़ने से मध्यप्रदेश के रीवा के सभी विकासखंडों सहित हनुमना, सिंगरौली, सीधी, सतना, शहडोल सहित उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, प्रयागराज, चित्रकूट जिले पूरी तरह लाभान्वित हो जाएंगे। इस रूट के जरिए व्यापार एवं व्यवसाय में भारी उन्नति, तराई अंचल के लोगों को बाजार और आवागमन की सुलभता के साथ पर्यटन और तीर्थाटन से स्थानीय रोजगार और सरकारी राजस्व में भारी वृद्धि हो जाएगी देश विदेश से आने वाले पर्यटक एवं तीर्थयात्री एक ट्रेन में पन्ना, खजुराहो, मैहर, चित्रकूट, पुर्वा, चचाई, क्योटी, बहुटी, उत्तरकौशल और दक्षिण कौशल अर्थात उत्तर भारत और दक्षिण भारत की प्राकृतिक सीमा रेखा सिरमौर का विंध्याचल का पठार, विंध्यवासिनी देवी, प्रयागराज आदि प्राचीन स्थलों का भ्रमण कर सकेंगे इसलिए सरकार और रेलवे के अधिकारी इस परियोजना के रूट में संसोधन करें इस संबंध बजट बढ़ोत्तरी होने पर भी रीवा को सिरमौर टनल का निर्माण करते हुए अतरैला, त्योथर, कोंराव से होते हुए मिर्जापुर से जोड़ा जाए। जटिलताओं और दूरी में नाममात्र की असमानता होते हुए भी इस रूट से रेल लाइन का विस्तार किया जाए ऐसा करने से बढ़ा हुआ बजट भी दूरगामी लक्ष्यों को प्राप्त करने वाला होगा यह न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है बल्कि सामारिक दृष्टि से भी दूरगामी सिद्ध होगा बाजाय कम बजट और तकनीकी खामियों का हवाला देकर इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों द्वारा अपनी जीत दिखाई जाए। इस संबंध मुंबई से नाशिक के बीच रेलवे ट्रैक से अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? यदि तकनीकी जटिलताओं के आगे हार जाती तो मुंबई से नाशिक तक रेलवे का विस्तार कभी भी नहीं हो सकता था । जब से यह खबर फैली है कि, रीवा से मिर्जापुर रेलवे लाइन के निर्माण में रीवा जिले की भारी उपेक्षा भर नहीं की गई है अपितु निर्माण किये जाने वाले रूट से सम्पूर्ण विंध्यप्रदेश के विकास की एक महान संभावना पर हमेशा के लिए विराम भी लग जाएगा तब से क्षेत्र की जनता में भारी रोष और असंतोष व्याप्त है।
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