केखे सिर मां सोही मऊर
केखे सिर मां सोही मऊर
विंध्य प्रदेश के सिरमौर विधानसभा से आचार्य आशीष मिश्र की खास रिपोर्ट //
मध्यप्रदेश शासित विंध्य प्रदेश की सिरमौर विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत जनप्रचलन से पृथक चुनाव में बहुकोणीय समीकरणों की सुदृढ़ परंपरा रही है। उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे होने के कारण यहां मुकाबला न सिर्फ़ बहुदलीय हो जाता है बल्कि सामाजिक ताने-बाने में जकड़ कर बेहद जटिल हो जाता है इतना ही नहीं यहां के मतदाताओं का रुझान राजनैतिक दलों की नीतियों से अधिक प्रत्याशी के व्यक्तित्व के आभा की ओर अधिक रुझान लिए होता है जनता इस बात को अधिक महत्व नहीं देती है कि सरकार किसकी होगी वल्कि यह देखती है कि प्रतयाशी के ऐसे कौन कौन से मुद्दे हैं जिनका दैनिक जन-जीवन से गहरा लगाव है यही कारण है कि जीत हार के पहले दर्जें के आकलन से अधिक यहां का चुनावी संघर्ष बेहद जटिल होता है।ऐसी परिस्थितियों वाले विधानसभा चुनाव क्षेत्रों की संख्या मध्यप्रदेश में कुछ एक ही हैं जिसमें सिरमौर का स्थान पहला है।
प्रत्याशियों की बात की जाए तो अब तस्वीरें एक दम साफ़ हो चुकी है लगभग सभी पार्टियों ने अपने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है अगर राजनैतिक दलों की बात की जाए तो भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर भारत की सभी महत्वपूर्ण पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है इस लिहाज से यह विधानसभा उत्तरप्रदेश की राजनीति में भी सरगर्मी का कारण बनी हुई है क्योंकि इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी तय होने के बाद भी कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है वहीं वहुजन समाज पार्टी की भाजपा से नजदीकी किसी से छुपी नहीं है।
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पूरे धमाके के साथ सरिता पाण्डेय को चुनाव मैदान में उतारा है
ऐसा माना जा रहा है कि मतदाताओं के बीच इनकी अच्छी पकड़ है हालिया दिनों में आम आदमी पार्टी के प्रति मतदाताओं के रुझान से इन्हें एक उभरती हुई शख्सियत के रूप पहचान मिल सकती है, इनकी पृष्ठभूमि एक विशिष्ट राजनैतिक परिवार से रही है जो किसी समय में विंध्य प्रदेश और बाद में बने मध्यप्रदेश में खासा प्रभाव रखते थे । इन्हें क्षेत्र की जनता एक साफ सुथरी कार्यशैली और उन्नतिशील प्रत्याशी के रूप में देख रही है ।इंजी. अविनाश शुक्ल युवा और स्वगठित राजनैतिक दल राष्ट्रवादी भारत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप पिछले कुछ वर्षों से लोगों के बीच में लगातार संपर्क में रहें है पेशे से इंजीनियर और अब राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं ये जिला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं इन्हें अपनी आकर्षक शैली के कारण बी डी शर्मा के कठिन प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा सकता है सिरमौर विधानसभा के कुछ क्षेत्रों में इन्हें जबरदस्त समर्थन प्राप्त है।
समाजवादी पार्टी से लक्ष्मण तिवारी -विशिष्ट शैली और जुझारू व्यक्तित्व के धनी लक्ष्मण तिवारी विंध्य प्रदेश में अपनी विशेष छाप रखते हैं इससे पूर्व ये मउगंज से विधायक रह चुके हैं इन्होंने मउगंज को जिला बनाने के लिए कई अभियान चलाए आखिर अंत में सरकार को जिला बनाने के लिए विवश होना पड़ गया। सिरमौर में आयोजित विशाल जनसभा में पहुंचे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने लक्ष्मण तिवारी को मैदान में उतार कर विकाश का कार्ड खेला है, इन्होंने रेल, सड़क और नहर के लिये बरदहा घाटी पर टनल के निर्माण की मांग बुलंद किये जाने का वादा किया है साथ ही सिरमौर, जवा और त्योथर को मिलाकर एक नया जिला बनवाने का संकल्प लिया । ऐसा माना जा रहा है कि लक्ष्मण तिवारी इस चुनाव में मतदाताओं के लिये आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं।
बी.डी. पांडेय बहुजन समाज पार्टी से
मध्यप्रदेश में पुलिस सेवा में रहे बी डी पांडेय ने हालिया दिनों में सामाजिक सेवी के रूप अपनी पहचान बनाने की दिशा में काफी हदतक काम किया है ऐसा माना जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी का परंपरागत बोटर अब सत्तारूढ़ भाजपा की ओर पूरी तरह से पलायन कर चुका है । बहुजन समाज पार्टी की कार्यशैली कुछ भी रही हो लेकिन दलित राजनीति के कारण अस्तित्व में आई यह पार्टी कुछ समय पूर्व तक दलितों और आदिवासियों के मसीहा के रूप में स्वीकारी जाती थी । परिस्थितियां अब पहले जैसी नहीं रही इसलिए बहुजन समाज पार्टी को दलित मतदाताओं से मनोवांछित फल मिलने की संभावना कम ही है । जहां तक मुद्दों की बात की जाए तो क्षेत्र के विकास लिये इनके पास कोई विशेष योजना नहीं दिखती है और केवल दयावान व्यक्तित्व और व्यक्तिगत सहयोग का आश्वासन ही अभी तक इस दल की चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा है ।
रामगरीब बनवासी त्योथर से विधायक रह चुके हैं, पिछले पंचवर्षीय में सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी ने इन्हें चुनाव मैदान में उतारा था। में आदिवासी और हरिजन मतदाताओं को बीच अपनी गहरी पैठ रखते हैं ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस ने बहुत गहन सोच-विचार करके सभी समीकरणों को साधते हुए ही इन्हें चुनाव मैदान में उतारा है कांग्रेस ने भाजपा को ध्यान रखते हुए भाजपा में फिक्स हो चुके दलित मतदाताओं को कांग्रेस की झोली में डालने का मास्टर स्ट्रोक खेला है जिससे एंटी भाजपा फैक्टर जिसमें मध्यप्रदेश की जनता भाजपा को आराम देने वाला रुझान दे रही है मास्टर कार्ड साबित हो सकता है ।
दिव्यराज सिंह भाजपा के लिये विगत दो पंचवर्षीय से इस बार भी परंपरागत रूप से चुनाव मैदान में उतारे गए हैं - अपने राजशाही विरासत के साथ एक विशेष सामाजिक ताने-बाने के शीर्ष के रूप में भी जाने जाते हैं हालांकि केवल पार्टी का चेहरा रहे दिव्यराज सिंह अपने व्यक्तित्व का जौहर दिखा पाने में अपने ही राजनीतिक दल के कड़े नियंत्रण का शिकार रहे हैं, लेकिन एक कर्मठ नेता की छवि को उभारने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी दरअसल भाजपा प्रत्याशियों के विषय पर जनमानस एक अलग तरह का रुख बनाए हुए है और उसका चिंतन प्रत्याशियों से हटकर मुख्यमंत्री की ओर केन्द्रित हो जाता है ऐसे में जबकि जनता शिवराज सिंह चौहान से जी छुड़ाने का मन बना रही है जिससे मुकाबला रोचक होने की उम्मीद की जा सकती है
कुल मिलाकर अब सभी प्रत्याशी राजनैतिक विचारधारा के सहारे नइय्या पार होता न देख जातिगत समीकरणों पर ध्यान केंद्रित कर चुके हैं
हालात ये हैं कि शिक्षित वर्ग जिनमें प्रदेश की भावी सरकार की रुपरेखा पर मंथन चल रहा है ऐसा मानकर चल रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी के INDIA गठबंधन में शामिल न होने के कारण और मायावती पर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के ईडी जैसे संस्थानों की गहरी ताक-झांक के कारण चुनावी माहौल बनाने वाले जुमलों से हटकर जमीनी हकीकत में भाजपा - बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन से स्थिति जस-की-तस हो जाएगी जबकि कांग्रेस रामगरीब बनवासी के सहारे आदिवासी और हरिजन मतदाताओं के रुझान से पहले ही विशेष लीड बनाती दिख रही है शिक्षित वर्ग के ब्राम्हण, क्षत्रिय और दलित मतदाताओं में शिवराज सिंह के प्रति गहरा आक्रोश है इसलिए अपने बोट को सार्थक करने के उद्देश्य से ये रामगरीब बनवासी को चेहरा मानकर कांग्रेस को बोट कर सकते हैं जबकि दिव्राज सिंह को लेकर उन्ही के जाति वर्ग से अभी तक आमराय बनती नहीं दिख रही है शिवराज सिंह चौहान के प्रति खिन्नता यहां भी जमकर देखी जा सकती है संख्याबल में कमी भी एक विशेष समस्या है कुल मिलाकर जीत-हार के आकलन को इसी सीमा तक देखा जा सकता है कि मतदाता किस हद-तक जातिवाद के झांसे में आकर प्रत्याशियों के जाल में फसता है वह भी ऐसे में जब लक्ष्मण तिवारी को छोड़कर किसी भी नेता के पास बुखार आने पर पैरासिटामोल की गोली लेकर आने का निमंत्रण देने के अतिरिक्त कोई जनहितकारी मुद्दा नहीं है। जनता बदलाव के मुद्दे पर सजगता से नजर बनाए हुए हैं यदि सिरमौर विधानसभा जातिवाद की भेंट चढ़ा तो वर्तमान सरकार के लिए सामने से और पर्दे के पीछे से दोनों दरवाजे खुल जाएंगे और जनता की समझ में मामला त्रिकोणीय दिखाई देगा।
संभागीय महासचिव, अधिमान्य पत्रकार नेतृत्व समिति, संभाग रीवा मध्यप्रदेश मोबाइल +918889668937
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